आपसी तनाव और विवाद को दूर करने के लिए बातचीत की मेज हमेशा बेहतर कारगर हथियार रही है। अगर विवाद दो देशों के बीच सीमा को लेकर हों तो सीमा पर संघर्ष की बजाय आपसी चर्चा के जरिए हल तलाशना हमेशा बेहतर विकल्प माना जाता रहा है। कुछ इन्हीं वजहों से भारत और चीन के प्रतिनिधियों के बीच 18 दिसंबर को बीजिंग में होने जा रही बातचीत को लेकर दोनों देशों और राजनयिक खेमे में उम्मीद जताई जा रही है। माना जा रहा है कि इस बातचीत से सीमा को लेकर जारी विवादों से उपजी आपसी कटुता और तनाव को कम करने में और मदद मिलेगी।
ज्ञात है कि भारत और चीन की सीमा की लंबाई 2 हजार किलोमीटर से अधिक है। इनमें कुछ किलोमीटर पर दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दों को लेकर मतभेद रहे हैं। इसे हल करने के लिए दोनों देशों ने साल 2003 में विशेष प्रतिनिधि समिति गठित की थी। यह समिति अब तक 22 बार बैठक कर चुकी है। इस लिहाज से देखें तो 18 दिसंबर को होने जा रही बैठक इस प्रतिनिधि समिति की 23 वीं बैठक होगी। यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि यह बैठक पांच साल के अंतराल के बाद हो रही है। दोनों देशों की विशेषाधिकार प्राप्त इस विशेष समिति की आखिरी बैठक 2019 में हुई थी।
यह ठीक है कि इन बैठकों में दोनों देश सीमा विवादों को सुलझाने को लेकर किसी विशेष बिंदु पर नहीं पहुंचे, लेकिन दोनों देशों के अधिकारी और राजनयिक मानते हैं कि इस समिति की बैठक दोनों देशों के बीच होने वाले मतभेदों और तनावों को दूर करने का यह कारगर ही नहीं, बेहद आशाजनक, उपयोगी और सुविधाजनक उपकरण है। माना जा रहा है कि बीजिंग में बुधवार 18 दिसंबर को होने जा रही बैठक में दोनों देशों की यह समिति सीमा के मुद्दों पर सकारात्मक बातचीत करेंगे। इसके बाद दोनों देशों के रिश्ते किस कदर आगे बढ़े हैं और दोनों देशों के रिश्तों की बेहतरी के लिए और क्या किया जा सकता है, इस पर भी बातचीत करेंगे।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने सोमवार 16 दिसंबर को बीजिंग में घोषणा की कि दोनों देशों की आपसी सहमति के अनुसार, चीन के केंद्रीय विदेश आयोग के कार्यालय के निदेशक वांग यी और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल 18 दिसंबर को बीजिंग में चीन-भारत सीमा के सवालों को लेकर विशेष प्रतिनिधियों की 23वीं बैठक में हिस्सा लेंगे। इस बीच भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल बीजिंग पहुंच गए हैं और दोनों देशों के रिश्तों को लेकर अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। वैश्विक समुदाय विशेषकर शांति चाहने वाले लोगों को उम्मीद है कि इस बातचीत से दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
(CRI)