भारतीय आंकड़े और कार्यक्रम नियोजन मंत्रालय ने हाल ही में वित्त वर्ष 2024-25 के दूसरे तिमाही (जुलाई-सितंबर) के मुख्य आर्थिक आंकड़े जारी किये। इस दौरान भारत का सच्चा अखिल घरेलू उत्पादन मूल्य पिछले साल की समान अवधि से 5.4 प्रतिशत बढ़ा,जबकि विनिर्माण उद्योग के अतिरिक्त मूल्य की वृद्धि दर सिर्फ 2.2 प्रतिशत दर्ज हुई। अगर अखिल अतिरिक्त मूल्य (जीवीए) के गठन पर देखा जाए, विनिर्माण उद्योग का योगदान 14 प्रतिशत रहा। इससे जाहिर है कि विनिर्माण उद्योग के विकास की गति धीमी रहती है।
गौरतलब है कि वर्तमान वर्ष भारत में मेक इन इंडिया रणनीति प्रस्तुत करने की 10वीं वर्षगांठ है। दस साल में भारत सरकार ने विनिर्माण उद्योग के विकास को प्राथमिकता देकर खास जोर लगाया और सिलसिलेवार प्रोत्साहन और सहायक कार्यक्रमों का कार्यांवयन किया, जिनमें व्यापार सुधार एक्शन योजना,पीएलआई, देश भर में विशाल ढांचागत निर्माण शामिल हैं। इन कदमों के परिणाम में भारत के विनिर्माण उद्योग में कई प्रतीकात्मक उपलब्धियां हासिल की गयीं। मसलन भारत अब विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन निर्यातक बन गया है और इस नवंबर में एक ही महीने में बीस हजार करोड़ रुपये के आंकड़े पार कर गया। भारत का फार्मा उद्योग अब पूरे विश्व में अग्रसर है। 2014—2024 तक भारत की दवाइयों का निर्यात 14 अरब 90 करोड़ अमेरिकी डॉलर से 27 अरब 90 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा, जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक इजाफा हुआ। लेकिन समग्र आर्थिक स्थिति के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो इधर कुछ साल विनिर्माण उद्योग के प्रदर्शन और अनुमान के बीच बड़ा अंतर नज़र आया। मेक इन इंडिया रणनीति की शुरुआत में दो कुंजीभूत लक्ष्य पेश किये गये थे। पहला, वर्ष 2025 तक जीडीपी में विनिर्माण उद्योग का अनुपात 14प्रतिशत-15 प्रतिशत से 25 प्रतिशत पर पहुंचेगा। दूसरा, वर्ष 2025 तक विनिर्माण सेक्टर में 10 करोड़ नये रोजगार सृजित किये जाएंगे। पर विश्व बैंक के आकड़ों के अनुसार वर्ष 2023 के अंत तक भारत के जीडीपी में विनिर्माण उद्योग का अनुपात 13 प्रतिशत से कम था, जो वर्ष 2014 से कम हो गया। वर्ष 2023 में विनिर्माण सेक्टर में कार्यरत लोगों की संख्या 3 करोड़ 57 लाख थी, जो दस साल के पहले लगभग बराबर है।
स्थानीय विश्लेषक के विचार में भारत के विनिर्माण उद्योग की वर्तमान सुस्त स्थिति के पीछे एक मुख्य कारण है कि वैदेशिक खुलापन अपर्याप्त है। मेक इन इंडिया के बड़े विकास को खुलेपन की गुणवत्ता और दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है।
सबसे पहले विदेशी उद्यमियों के लिए वाणिज्यिक वातावरण निरंतर सुधारने पर खास जोर लगाया जाना चाहिए। कानून के संदर्भ में देखा जाए, तो भारत में विदेशी निवेशकों के प्रति विशेष विधान नहीं है, जबकि भारत की कानून व्यवस्था बेहद जटिल है और कानूनी प्रवर्तन में तरह तरह की समस्याएं भी मौजूद हैं। इसी कारण विदेशी कंपनियों को भारत में अधिक कानूनी खतरे का सामना करना पड़ता है। भारतीय प्रवर्तन विभाग द्वारा विदेशी कंपनियों पर भारी रकम का फाइन लगाने के मामले कम नहीं है। ब्रिटेन की वोडाफोन कंपनी, दक्षिण कोरिया की सैमसंग कंपनी, अमेरिका की फोर्ड और वाल्मा, चीन के श्याओ मी और ओपो पर करोड़ों अमेरिकी डॉलर का फाइन लगाया गया था, जिसने विश्व भर वाणिज्य और मीडिया जगत का ध्यान खींचा था। इस के अलावा विदेशी उद्यमों के प्रति सरकार की नीतियों में कभी-कभी बड़ा बदलाव आता है, जो सम्बंधित कंपनियों के सामान्य संचालन और दीर्घकालिक योजना पर गंभीर प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए कर वसूली, बाजार प्रवेश, भूमि के प्रयोग, कंपनी में शेयर के ढांचे, प्रबंधन टीम के गठन, उत्पाद के घरेलू पार्ट्स के अनुपात सहित विभिन्न पहलुओं में विदेशी कंपनियों को संभवतः निरंतर नीतिगत परिवर्तन का निपटारा करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कई संभावित विदेशी उद्यम भारतीय बाजार में उतरने को लेकर संकोच करते हैं, जिनमें मशहूर इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी टेस्ला शामिल है।
दूसरा, भारतीय विनिर्माण उद्योग को अधिक सक्रियता से वैश्विक श्रम बंटवारे सहयोग में भाग लेना और गहराई से वैश्विक व्यवसाय चेन में घुलना मिलना चाहिए ताकि अपना अपेक्षाकृत लाभ उठाया जाए। भारत अब विश्व में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। महत्वपूर्ण बात है कि 15 से 59 वर्ष के आयु वर्ग की श्रमिक शक्ति का अनुपात कुल जनसंख्या का 80 प्रतिशत है। 35 वर्ष की आयु से कम होने वाली जनसंख्या कुल जनसंख्या का 60 प्रतिशत है। कहा जा सकता है कि भारत विश्व में सबसे जवान देशों में से एक है। भारत को विनिर्माण उद्योग के विकास के लिए विशाल जनसांख्यिकीय लाभांश है। ऐसी स्थिति में भारत को श्रम संघन व्यवसायों के विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए। पेइचिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और पूर्व विश्व बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री लिन यीफु ने हाल ही में मीडिया के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की चर्चा में कहा कि भारत में पर्याप्त युवा श्रमिक शक्ति है और वेतन का स्तर मध्यम व ऊंचे आय वाले देशों से कम है। प्रतिस्पर्द्धात्मक दृष्टि से यह भारत की अपेक्षात्मक बढ़त है। अगर भारत संगठित क्षेत्र में श्रम सघन विनिर्माण उद्योग का विकास करे, तो इस क्षेत्र में उत्पादन कुशलता उन्नत होगी और कार्यरत लोगों का वेतन बढ़ जाएगा, जो गरीबी उन्मूलन का सबसे अच्छा तरीका है। वर्तमान में भारत को अधिक रोजगार का मौका सृजित करने की जरूरत है ताकि प्रचुर श्रमिक शक्ति भारी बोझ के बजाय भारत के विकास की संपत्ति बन जाए।
इसके अलावा भारत को क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग की हिस्सेदारी में निर्णायक भूमिका निभाने की आवश्यकता है। इससे भारत के खुलेपन का विस्तार होगा और विनिर्माण सेक्टर को भी अधिक मौका और प्रेरणा मिलेगी। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय नीति आयोग के प्रमुख बी. वी. आर. सुब्रह्मण्यम ने इस नवंबर में व्यक्त किया कि भारत को क्षेत्रीय सर्वांगीण आर्थिक साझेदारी संधि (आरसीईपी) में शामिल होना चाहिए। भारत को सीपीटीपीपी का एक सदस्य भी बनना चाहिए। उनके विचार में इन संगठनों में शामिल होने से भारत विनिर्माण उद्योग का आधार मजबूत करेगा और निर्यात के 40 प्रतिशत हिस्से का योगदान देने वाले मध्यम व छोटे उद्यमों का निर्यात और बढ़ जाएगा। उल्लेखनीय बात है कि भारत आरसीईपी वार्ता में सब से पहले शामिल होने वाले देशों में से एक था, पर वार्ता के अंतिम क्षण में भारत ने हटने का फैसला किया। 1 जनवरी 2022 को भारत के बिना आरसीईपी औपचारिक रूप से प्रभावी हो गयी और विश्व में सबसे बड़े आकार वाला मुक्त व्यापार क्षेत्र पैदा हुआ। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2023 में विश्व व्यापार में आरसीईपी क्षेत्र का योदगान 13 खरब अमेरिकी डॉलर था और उस का अनुपात करीब 28 प्रतिशत है। आईएमएफ का अनुमान है कि वर्ष 2023 से 2029 तक आरसीईपी क्षेत्र के जीडीपी में 109 खरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि होगी, जो अलग-अलग तौर पर अमेरिका और यूरोपीय संघ के 1.4 गुने और 1.9 गुने से अधिक होगी। उल्लेखनीय बात है कि आरसीईपी एक खुली और समावेशी संधि है। उसका द्वार भारत समेत विभिन्न पक्षों के लिए खुला है।
गौरतलब है कि विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक चीन के विनिर्माण उद्योग का अतिरिक्त मूल्य वर्ष 2010 में पहली बार अमेरिका को पार कर गया और इस के बाद विश्व के पहले स्थान पर बना हुआ है, जो वैश्विक औद्योगिक वृद्धि का महत्वपूर्ण इंजन है। चीन के विकास में एक मूल्यवान अनुभव है कि खुलेपन के विस्तार से घरेलू सुधार और विकास को बढ़ावा मिलेगा। यह अनुभव मेक इन इंडिया के विकास के लिए शायद मददगार है।
(CRI)