अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का नया कार्यकाल एशिया, भारत और चीन-अमेरिका रिश्तों का वैश्विक प्रभाव

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का नया कार्यकाल एशिया, भारत और चीन-अमेरिका रिश्तों का वैश्विक प्रभाव

नवीनतम अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों के बादडोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है। उनके कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही कई नई नीतियों का ऐलान हुआ हैजिनका वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रभाव पड़ेगाखासकर एशिया के देशों परजिन में चीनभारत और अन्य प्रमुख राष्ट्र शामिल हैं। खासकरचीन-अमेरिका संबंधों का भविष्य वैश्विक राजनीतिव्यापारऔर सुरक्षा पर महत्वपूर्ण असर डालेगा।

 

चीन-अमेरिका संबंधों का परिपेक्ष्य

 

चीन-अमेरिका संबंधों का विकास दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा हैऔर इसके प्रभाव को समझना आवश्यक है। चीन और अमेरिका दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैंऔर उनके बीच संबंधों का वैश्विक राजनीतिअर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ट्रम्प प्रशासन की नीतियों के तहतचीन के साथ व्यापार संबंधों में तनाव बढ़ा हैजिससे वैश्विक व्यापार प्रभावित हुआ है। टैरिफ और व्यापार युद्ध के कारण दुनिया भर के बाजारों में अस्थिरता देखी गई है।

चीन और अमेरिका के बीच संबंध पिछले कुछ वर्षों में काफी तनावपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार युद्धतकनीकी नीतियांमानवाधिकारऔर दक्षिणी चीन सागर जैसे मुद्दे लगातार चर्चा में रहे हैं। ट्रंप के पहले कार्यकाल में इन मुद्दों पर कड़ा रुख अपनाया गयाऔर विशेष रूप से व्यापारिक मोर्चे पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा। हालांकिट्रंप प्रशासन ने चीन के खिलाफ कई सख्त कदम उठाएजैसे व्यापार शुल्क (tariffs) बढ़ाना और चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगानाअब दूसरे कार्यकाल में यह देखा जाएगा कि क्या वह अपनी कड़ी नीति को बनाए रखते हैं या फिर बातचीत के जरिए रिश्तों में सुधार की कोशिश करेंगे।

चीनजो अब एशिया का सबसे बड़ा आर्थिक और सैन्य शक्ति बन चुका हैको लेकर ट्रंप की नीतियां महत्वपूर्ण होंगी। यदि ट्रंप प्रशासन चीन के खिलाफ कड़े कदम उठाता है तो इसका असर न केवल चीनबल्कि पूरे एशियाई महाद्वीप पर पड़ेगा। खासकरभारतजापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर भी इसका प्रभाव दिखाई देगा। एशिया में चीन और भारत जैसे देशों के लिए अमेरिकी नीतियों का प्रभाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। चीन के साथ व्यापारिक तनाव के कारण भारत जैसे देशों को नए अवसर मिल सकते हैंलेकिन साथ ही चुनौतियां भी बढ़ सकती हैं। अमेरिका की चीन-विरोधी नीतियों के कारण एशियाई देशों को अपनी विदेश नीति और आर्थिक रणनीतियों में संतुलन बनाना पड़ सकता है।

 

भारतजो अमेरिकी प्रशासन के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा चुका हैचीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में ट्रंप की मदद का स्वागत कर सकता है। हालांकिचीन के खिलाफ कड़ी नीतियों का असर भारत के व्यापार और तकनीकी सहयोग पर भी पड़ सकता हैक्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध लगातार बढ़ रहे हैं। भारत के लिएचीन-अमेरिका संबंधों का विकास एक अवसर और चुनौती दोनों है। अमेरिका के साथ मजबूत संबंध भारत को चीन के साथ व्यापारिक और सामरिक मोर्चे पर मजबूत स्थिति प्रदान कर सकते हैं। हालांकिअमेरिका की नीतियों में अनिश्चितता भारत के लिए चुनौती भी पैदा कर सकती हैखासकर व्यापार और तकनीकी सहयोग के मामले में। भारत-अमेरिका रिश्तों में एक नई दिशा देखने को मिल सकती है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच रिश्ते काफी अच्छे रहे हैंऔर भारत ने चीन के खिलाफ अमेरिकी नीतियों का समर्थन किया है। ऐसे मेंभारत को ट्रंप प्रशासन से एक मजबूत साझेदार मिल सकता है। हालांकिअमेरिका की नीतियों का असर भारत के आर्थिक विकास पर भी हो सकता हैक्योंकि भारत-चीन व्यापारिक संबंध भी महत्वपूर्ण हैं। यदि ट्रंप प्रशासन चीन पर कड़े कदम उठाता हैतो भारत को सावधान रहना होगाक्योंकि व्यापारिक तंत्र में बदलाव भारत के लिए भी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।

 

चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध के चलते वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव आया हैऔर यह असर एशिया के अन्य देशों पर भी पड़ा। भारत और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को इस स्थिति का लाभ हो सकता हैक्योंकि वे चीन के स्थान पर उत्पादन और आपूर्ति केंद्र के रूप में उभर सकते हैं। हालांकिट्रंप प्रशासन द्वारा सख्त व्यापार नीतियों को लागू करने से वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता और दबाव बनेगाजिसका असर निवेशमुद्रास्फीति और अन्य वैश्विक आर्थिक गतिविधियों पर पड़ेगा।

ट्रंप प्रशासन ने पहले ही अपने कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रति अपनी नीतियों में असहमति व्यक्त की थी। यदि उनका रुख यही रहता है तो चीनजो संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य हैऔर अन्य उभरते देशों के लिए यह एक चुनौती हो सकती है। चीन और अमेरिका के रिश्तों में तनाव से संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों में निर्णय प्रक्रिया भी प्रभावित हो सकती है।

चीन और अमेरिका के रिश्तों में मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मानकों पर भी बहस जारी रहेगी। ट्रंप प्रशासन पहले ही चीन को मानवाधिकार उल्लंघन के लिए आलोचना कर चुका हैखासकर तिब्बतशिनजियांग और हांगकांग में। ऐसे मेंट्रंप के नए कार्यकाल में चीन पर दबाव बनाए रखने की संभावना है। इससे न केवल चीन की घरेलू नीति पर असर पड़ेगाबल्कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार राजनीति में भी बदलाव हो सकते हैं।

 

ट्रम्प प्रशासन की नीतियों का दुनिया पर व्यापक प्रभाव पड़ेगाऔर चीन-अमेरिका संबंधों का विकास इसका केंद्र बिंदु होगा। एशियाई देशोंखासकर चीन और भारतको इन बदलावों के लिए तैयार रहना होगा। वैश्विक स्तर पर सहयोग और संतुलन बनाए रखना ही इस चुनौती का समाधान हो सकता है। यह केवल आर्थिक और व्यापारिक बदलावों तक सीमित नहीं रहेगाबल्कि वैश्विक राजनीतिसुरक्षा और मानवाधिकार के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण परिणाम सामने आएंगे। भारतजापान और अन्य एशियाई देशों को अपनी नीति में लचीलापन और सूझबूझ के साथ कदम उठाने होंगे ताकि वे वैश्विक शक्ति संतुलन में अपना स्थान बनाए रख सकें।

इस प्रकारचीन-अमेरिका संबंधों का भविष्य न केवल इन दोनों देशों के लिएबल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। भारत को इस परिस्थिति में सतर्क और सक्रिय रहना होगा ताकि वह अपने हितों को सुरक्षित रख सके।

(CRI)

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