उमेश चतुर्वेदी
वर्ष 1949 में नये चीन की जब स्थापना हुई तो उसके अगले ही साल बाद भारत ने चीन के साथ कूटनीतिक रिश्ते स्थापित कर लिए। दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों की पहचत्तरवीं साल गिरह बीते एक अप्रैल को हुई। इस मौके पर दोनों देशों ने अपने कूटनीतिक रिश्ते को धूमधाम से मनाने और अपने लोगों के बीच इसे प्रचारित करने का फैसला लिया है। भारत चीन का नजदीकी पड़ोसी है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद, भारत चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-समाजवादी देश बन गया।
तब से लेकर भारत और चीन के आपसी रिश्तों में उतार-चढ़ाव भले ही आते रहे, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते बने रहे। चीन और भारत की मित्रता का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि चीन और भारत ने साल 2011 को ‘चीन-भारत विनिमय वर्ष’ के रूप में मनाया। इस दौरान दोनों देशों के बीच कारोबारी और सांस्कृतिक संबंधों को और बेहतर बनाने की दिशा में कदम उठाए गए। इसके ठीक अगले साल यानी 2012 में भी दोनों देशों ने अपनी दोस्ती को नया स्वरूप देते हुए इस वर्ष को ‘चीन-भारत मैत्री एवं सहयोग वर्ष’ के रूप में मनाया। इसके बाद साल 2014 को भारत-चीन मैत्री वर्ष के रूप में मनाया गया।
भारत और चीन के बीच संबंधों के बारे में कुछ और जानकारी:
भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंध 1 अप्रैल, 1950 को स्थापित हुए और इसके ठीक चार साल बाद 1954 में दोनों देशों ने मिलकर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों यानी पंचशील की ना सिर्फ व्याख्या की थी, बल्कि इस सहअस्तित्व के सिद्धांत पर आगे बढ़ने का संकल्प भी लिया था। साल 1988 में दोनों देशों के रिश्तों में गर्मजोशी तब और बढ़ी, जब भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया। राजीव गांधी चीन का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री रहे।
साल 2018 में चीन के राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच वुहान में ‘भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन’ का आयोजन किया गया था। इसके पहले 1988 में, भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी की यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने “लुक फॉरवर्ड” के लिए सहमति व्यक्त की। 1991 में, चीन के नेता ली पेंग ने भारत का दौरा किया। 31 साल बाद चीन का कोई नेता भारत आया था। 1992 में, भारतीय राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने चीन का दौरा किया। वह पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने भारत गणराज्य की स्वतंत्रता के बाद से चीन का दौरा किया। सितम्बर 1993 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्ह राव चीन गए। भारत और चीन के रिश्तों को बेहतर बनाने के संदर्भ में फरवरी 1996 को भी याद किया जाना चाहिए। तब भारत ने पहल करते हुए एक मंत्रालय स्तरीय प्रतिनिधिमंडल चीन भेजा और कई विषयों पर चर्चा की गई। चीन ने भारत के इस कदम को आवश्यक सकरात्मक एवं प्रगतिवादी दृष्टिकोण का नाम दिया। इसी साल अप्रैल में साझे दोनों देशों के कार्यसमूह की पेइचिंग में हुई 11वीं बैठक के दौरान दोनों देशों में विकास के नये पहलुओं पर जोरदार चर्चा हुई। इसके दो महीने बाद जून 1996 में तत्कालीन भारतीय विदेश मन्त्री जसवन्त सिहं ने चीन का दौरा किया और चीन के नेताओं से उच्चस्तरीय से बातचीत की। इस दौरान दोनो देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक एवं सास्कृतिक सहयोग विकसित करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाने का फैसला हुआ। इसी दौरान भारत-चीन के व्यापार को 2 अरब डॉलर से अधिक करने का भी निर्णय लिया गया। फरवरी 2000 में भारत ने चीन की डब्लू टी ओ सदस्यता का समर्थन किया था। मार्च 2000 में भारत एवं चीन के बीच पेइचिंग में सुरक्षा मसले पर सचिव स्तरीय बातचीत हुई। जो दो दिनों तक चली। दोनों देशों के संबंधों में नया अध्याय मई 2000 में लिखा गया, जब भारत के राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने चीन की यात्रा की और आपसी मुद्दों पर बातचीत की।
साल 2001 में चीन के नेता ली फंग ने भारत दौरे पर आए और आपसी रिश्तों की दिशा में दोनों देश एक कदम और आगे बढ़े। इसके बाद 2002 में तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग जी भारत यात्रा पर आए, जिसके बाद साल 2003 में भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीनी प्रधानमन्त्री वन चापाओ के साथ चीन-भारत सम्बन्धों को लेकर सैद्धांतिक और चतुर्मुखी सहयोग घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया। इस घोषणापत्र में कहा गया है कि चीन और भारत के आपसी सम्बन्ध परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र को दोनों देशों के भावी रिश्तों के विकास की राह दिखाने वाला और मील का पत्थर दस्तावेज माना गया। इसके बाद चीन के प्रधानमन्त्री वेन जियाबाओ ने 2005 और 2010 में भारत की यात्रा की। इसके बाद चीनी राष्ट्रपति हू जिन्थाओ 2006 में भारत आये। इसके बाद भारतीय प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने सन 2008 में चीन की यात्रा की। इसके बाद चीन के प्रधानमन्त्री ली खछ्यांग 2013 में भारत आये। इसके अलावा ब्रिक्स शिखर बैठक से जुड़ी दो बैठकें भी हुईं। डा. मनमोहन सिंह ने 2011 में चीन के सान्या का दौरा किया तथा राष्ट्रपति हू जिन्थाओ ने 2012 में नई दिल्ली का दौरा किया। इसके साथ ही उनकी एक यात्रा अक्टूबर, 2008 में असेम शिखर बैठक के सिलसिले में पेइचिंग की हुई।
2014 में भारत का प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने की दिशा में प्रयास शुरू किए। इसी कड़ी में सितम्बर 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग मोदी के निमंत्रण पर अहमदाबाद पहुंचे। जिस तरह मोदी ने उनकी आगवानी की, वह अपने आप में खास रही। चीन के राष्ट्रपति की इस भारत यात्रा के दौरान 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अलावा दोनों देशों ने क्षेत्रीय मुद्दों और चीन के औद्योगिक पार्क से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। जून 2014 में चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए और भारतीय समकक्ष सुषमा स्वराज से मिले। उसी महीने तत्कालीन उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी भी पांच दिन के दौरे पर गए थे। जुलाई 2014 में भारतीय सेना के तत्कालीन चीफ बिक्रम सिंह तीन दिन के लिए पेइचिंग दौरे पर गए थे। उसी महीने ब्राजील में हुई ब्रिक्स देशों की बैठक में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की पहली मुलाकात हुई। सितंबर 2014 में शी चिनफिंग भारत आए। नरेन्द्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर अहमदाबाद में उनका स्वागत किया था। चीन ने पांच साल के भीतर भारत में 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा के निवेश का वादा किया। फरवरी 2015 में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन की यात्रा की और वहां पर शी चिनफिंग से मिलीं। मई 2015 में प्रधानमंत्री मोदी का पहला चीन दौरा हुआ। अक्टूबर में चिनफिंग और मोदी की मुलाकात गोवा में ब्रिक्स देशों की बैठक में हुई। जून 2017 में भारत को शांगहाई सहयोग संगठन यानी एससीओ का पूर्ण सदस्य बनाया गया। मोदी ने शी चिनफिंग से मुलाकात की और इसके लिए उनका धन्यवाद किया। 2018-19 में राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने चीन के वुहान और भारत के महाबलीपुरम में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनौपचारिक बैठक की। CRI