दिव्या तिवारी
इंडोनेशिया में आयोजित हुए बांडुंग सम्मेलन की 70वीं वर्षगांठ पर एक बार फिर दुनिया ने एशिया और अफ्रीका की अहमियत देखी, जिसमें चीन का सबसे अहम योगदान रहा। 2025 में आयोजित हुई 70वीं वर्षगांठ पर एशियाई और अफ्रीकी देशों की मित्रता पर जोर दिया गया, जबकि साम्राज्यवाद के विरोध पर सबसे ज्यादा नजर रही। इस सम्मेलन की जड़ें एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के बीच सहयोग, शांति और आत्मनिर्भरता को मजबूत करने में हैं, यही वजह रही कि चीन की ओर से ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत’ की वकालत इस सम्मेलन की एक आधारशिला बन गई थी, जिसे बाद में अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक मानक माना गया। इस बार भी चीन ने सबसे ज्यादा जोर इसी बात पर दिया। एकजुटता से काम करना ही सबके लिए अच्छा विकल्प रहेगा, जिससे विकास और रोजगार के नए मार्ग खुलेंगे। खास बात यह है कि चीन के विचारों पर सभी ने सहमति जताई, जिससे इस सम्मलेन में एक बार फिर चीन की उपयोगिता दुनिया में साबित हुई है।
चीने की वैश्विक न्याय और बहुपक्षवाद
बांडुंग सम्मेलन की 70वीं वर्षगांठ चीन ने वैश्विक न्याय और बहुपक्षवाद की वकालत करते हुए बुनियादी सिद्धांतों को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने की बात कही। क्योंकि चीन ने इन सिद्धांतों को संयुक्त राष्ट्र मंचों, विकासशील देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों, और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव सी परियोजनाओं में समाहित किया, इससे वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच सहयोग को बल मिला, यही वजह है कि विश्व के इतने बड़े आयोजन को लेकर चीन की स्पष्टता एशिया और अफ्रीका के देशों के लिए उपयोगी रहेगी, चीन ने बांडुंग भावना के अनुरूप ‘एक बहुध्रुवीय दुनिया’ की वकालत की, जहां सभी देशों की संप्रभुता और हितों का सम्मान हो, चीन आज भी एकतरफा प्रतिबंधों, सैन्य हस्तक्षेप, और वैश्विक प्रभुत्ववाद का विरोध करता है, जबकि वैश्विक स्तर पर विकास के लिए एक दूसरे के सहयोग की वकालत भी करता है, ताकि विकास का माध्यम हर देशों में सामान स्तर पर आ सके।
व्यापार निवेश पर बढ़ावे पर जोर
चीन एशियाई और अफ्रीकी देशों के व्यापार निवेश और बढ़ावे पर भी जोर दिया। चीन ने बांडुंग भावना को आगे बढ़ाते हुए एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ व्यापार, निवेश, तकनीक और शिक्षा के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया है। चीन का ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग फोरम’ और बीआरआई की इसी भावना का विस्तार है, चीन ने यह बार-बार दोहराया कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों का संचालन संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत होना चाहिए, जो बांडुंग सिद्धांतों से मेल खाता है, क्योंकि यह दुनिया के लिए यह उपयोगी होगा। चीन ने यह भी दोहराया कि हाल के वर्षों में, जैसे कोविड महामारी के दौरान, चीन ने वैक्सीन, मेडिकल सहायता, और आर्थिक सहयोग के जरिए बांडुंग भावना को क्रियान्वित किया खासकर विकासशील देशों के साथ, उसे हमें आगे भी जारी रखना चाहिए।
बांडुंग सम्मेलन की 70वीं वर्षगांठ पर चीन ने यह साबित किया है कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 1955 में थे, क्योंकि चीन का रुख बहुपक्षीयता, समानता और वैश्विक न्याय के समर्थन में रहा है और वह बांडुंग भावना को आधुनिक वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में नई दिशा दे रहा है। यही सिंद्धात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एशियाई और अफ्रीकी देशों की एकता और मजबूती का प्रतीक बने हैं।
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत
एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान
आक्रामकता या बल प्रयोग का परित्याग
आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं
समानता और पारस्परिक लाभ
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
चीन ने दिया सहयोग का भरोसा
बांडुंग सम्मेलन की 70वीं वर्षगांठ पर यह स्पष्ट है कि चीन ने न केवल शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया, बल्कि उन्हें वैश्विक कूटनीति में सक्रिय रूप से लागू भी किया है। चीन के प्रतिनिधियों ने कहा कि चीन का रुख बहुपक्षीयता, समानता और वैश्विक न्याय के समर्थन में रहा है। इसलिए वह बांडुंग सम्मेलन के जरिए यह आश्वस्त करना चहता है कि भविष्य में चीन एशिया की तरफ से अफ्रीकी देशों के हर तरह से सहयोग करेगा। साथ ही वह बांडुंग भावना को आधुनिक वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में नई दिशा दे रहा है। खास बात यह है कि चीन आज के वक्त में एक बड़ी वैश्विक ताकत है, जिसकी उपयोगिता अंतरराष्ट्रीय स्तर भी साबित हुई है। इसलिए चीन का सकारत्मक रुख उपयोगिता दे रहा है। बांडुंग सम्मेलन के जरिए चीन की उपयोगिता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एशियाई और अफ्रीकी देशों में दोस्ती का नई कहानी बना रहा है।
बांडुंग सम्मेलन की 70वीं वर्षगांठ पर चीन का योगदान न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी अत्यंत प्रासंगिक है। चीन का यह दृष्टिकोण वैश्विक चुनौतियों, जैसे जलवायु परिवर्तन, महामारी और आर्थिक असमानता, के समाधान में सहायक सिद्ध हो सकता है। इस प्रकार, बांडुंग भावना को जीवित रखते हुए चीन ने न केवल अपने कूटनीतिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया, बल्कि वैश्विक शांति और सहयोग की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।