भारत चीन के राजनयिक संबंध – एक विवेचना

भारत चीन के राजनयिक संबंध – एक विवेचना

डॉ. शिखा गुप्ता

भारत और चीन भूगोल में एक बड़े महाद्वीप एशिया के बड़े हिस्से के महत्वपूर्ण अंग हैं। गौर से देखें तो दोनों ही देश अपने ऊपरी भाग में भूमि सीमा से और निचले भाग में जल सीमा से युक्त हैं। दोनों ही देशों की इस भौगोलिक समानता से भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कूटनीति के नजरिए से दोनों ही देश का विश्व राजनीति तथा वैश्विक भूनीति में एक प्रमुख स्थान है। अर्थात भौगोलिक, संसाधनिक और वैश्विक नज़रिए से दोनों ही देश प्रमुख एवं महत्वपूर्ण हैं। चीन और भारत दोनों ही वैश्विक दक्षिण देशों के सदस्य हैं। 1 अप्रैल 2025 से चीन और भारत के राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। भारत और चीन एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक और व्यापारिक रिश्तों के सूत्र से बंधे हैं। भारत और चीन के बीच का ऐतिहासिक “रेशमी मार्ग” का संपर्क इतिहास के पन्नों पर एक रेशमी स्थान रखता है। भारत से जड़ित बुद्ध धर्म एवं बुद्ध नीति को चीन ने आज तक जिस सद्भावना से अपनाया, वह इस बात का प्रमाण है कि भारत की छाप चीनी संस्कृति पर कितनी गहरी है। भारत और चीन को आज के समय में यदि साथ मिलकर खड़े होना हैं तो यह तथ्य एक बड़ा सूत्रधार बन सकता है। किसी भी रिश्ते को कायम करने के लिए पहली सीढ़ी एक प्रमुख भूमिका निभाती है, और बुद्ध धर्म तथा नीति इस पहली सीढ़ी को बनाने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं।

 

आज के परिप्रेक्ष्य में दोनों ही देश अपने-अपने तरीके से गहन वैश्विक परिवर्तन और समायोजन के नए युग में सफलताओं की नई ऊचाइयोंको छू रहे हैं। दोनों ही देश उच्च तकनीक क्षेत्र के विकास को गहरा कर रहे हैं। ऐसे में दोनों देश यदि आपसी मतभेद को कम करके व्यापार एवं तकनीकी क्षेत्र में आपसी तालमेल पर कार्य करें, तो न केवल दोनों देशों को बल्कि सम्पूर्ण विश्व को एक सकारात्मक दिशा मिलेगी। साथ ही, दोनों देश आपसी संवाद के माध्यम से विश्‍व को शांति का संदेश देने में भी प्रभावी साबित होंगे। इस दिशा के लिए दोनों देशों को सकारात्मक और प्रगतिशील कदम उठाने होंगे। दोनों देशों को आपसी तालमेल बढ़ाकर सम्मान, संवेदनशीलता और सद्भावना में रुचि दिखाते हुए एक विश्वसनीय माहौल बनाना होगा। भारत और चीन दोनों देशों को बहुपक्षीय संस्थानों में अपने सकारात्मक विचार साझा करते हुए मिलकर कदम बढ़ाने का एक निरंतर प्रयास करना ज़रूरी है। ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और जी20 – इन सभी महत्वपूर्ण बहुपक्षीय संस्थानों में भारत और चीन मंच साझा करते हैं; जिसका अर्थ यह निकलकर आता है कि दोनों ही देश जिम्मेदार और सक्रिय शक्तियां हैं जो स्वयं एवं विश्व की तरक्की के लिए एक अहम भूमिका निभाती हैं।

 

गत वर्ष दोनों देशों के बीच जरूरी तालमेल और सकारात्मक संवाद देखा गया। भारतीय सचिव (दक्षिण एशिया) श्री गोरंगलाल दास और चीनी विदेश मंत्रालय के महानिदेशक (एशिया विभाग) श्री ल्यू चिनसोंग के बीच हुई वार्ता और भारतीय विदेश सचिव श्री विक्रम मिश्री के बीजिंग दौरे को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम की तरह देखा जा रहा है; जिसके चलते कुछ बड़े फैसले लिए गए जिसमें-

 

• दोनों देशों ने संबंधों में स्थिरता लाने और उन्हें प्रगाढ़ करने के लिए जनता को केंद्र में रखते हुए कुछ कदम उठाने पर सहमति जताई।

 

• हाइड्रोलॉजिकल डेटा के प्रावधान और सीमा पार नदियों से संबंधित अन्य सहयोग को पुनर्बहाल करने पर चर्चा करने के लिए जल्द ही बैठक आयोजित करने पर भी सहमति जताई।

 

• दोनों देशों के बीच सीधी हवाई सेवाएं फिर से शुरू करने पर सैद्धांतिक रूप से सहमति जताई।

 

• आर्थिक और व्यापार क्षेत्र के विशिष्ट मुद्दों पर चर्चा की गई, ताकि इन क्षेत्रों से संबंधित समस्याओं का निवारण हो सके एवं दीर्घकालिक नीति पारदर्शिता और निश्चितता को बढ़ावा मिले।

 

• दोनों देशों में लोगों के बीच आदान-प्रदान बढ़ाने और उसे आसान बनाने के लिए उचित कदम उठाने पर भी सहमति जताई। उन्होंने संबंधों में स्थिरता लाने और उन्हें प्रगाढ़ करने के लिए जनता को केंद्र में रखते हुए कुछ कदम उठाने पर सहमति जताई।

 

• मीडिया और प्रबुद्ध मंडल के बीच वार्ता बढ़ाने के लिए कदम उठाने पर भी सहमत हुए।

 

भारत अपने पंचामृत की विदेश नीति- सम्मान, संवाद, सुरक्षा, समृद्धि और संस्कृति की ओर प्रतिबद्ध है। भारत एक वैश्विक स्तर पर जिम्मेदार देश है जिसे यह पूरी शिद्दत से निभाने के लिए प्रतिबद्धता और क्षमता का पालन करता है। मेरा मानना है कि आने वाले समय में यदि दोनों देश एक-दूसरे पर परस्पर विश्वास स्थापित कर पाएं तो दोनों देश विश्व के इस बदलती वैश्विक व्यवस्था में नए चरण पर पहुँचने की क्षमता रखते हैं। परस्पर विश्वास और घनिष्ठता बहाल करना दोनों देशों की जिम्मेदारी है। यदि दोनों देश रिश्ते बेहतर करना चाहते हैं तो इसे दोनों ही देशों को गंभीरता से निभाना होगा। वास्तव में यही दोनों देशों के रिश्तों को संभालने के लिए एक जड़ी-बूटी का काम करेगा। रिश्तों में अगर विश्वास होगा तो मिठास भी बनेगी और बढ़ोत्तरी भी होगी जो कि दोनों देशों के राष्ट्रीय एवं वैश्विक पटल पर एक नई साझेदारी के नए आयाम तय करने में पूर्ण रूप से सक्षम है। इस बात में गहराई और वजन कितना है इसका फैसला दोनों देशों को करना है। दोनों देशों की संप्रभुता की इज़्जत करते हुए दोनों देश विश्व के लिए शांति का नया पैगाम लिख सकते हैं।

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