अमेरिकी फिल्म टैरिफ: सांस्कृतिक सुरक्षा या वैश्वीकरण के उलट रुख?

अमेरिकी फिल्म टैरिफ: सांस्कृतिक सुरक्षा या वैश्वीकरण के उलट रुख?

श्याओ थांग

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि वह वाणिज्य विभाग और व्यापार प्रतिनिधियों को सभी गैर-अमेरिकी फिल्मों पर 100% टैरिफ लगाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अधिकृत करेंगे। ये कदम वैश्विक फिल्म उद्योग के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है, खासकर चीन जैसी उन उभरती फिल्म शक्तियों के लिए, जिनकी फिल्मों ने बीते वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन किया है।

 

उदाहरण के तौर पर, 5 मई तक चीनी फिल्म “नेचा 2” ने 15.8 अरब युआन से अधिक की कमाई कर ली है और यह “टाइटैनिक” को पीछे छोड़कर वैश्विक बॉक्स ऑफिस की टॉप 5 फिल्मों में जगह बनाने के करीब पहुंच गई है। लेकिन इस अभूतपूर्व सफलता के बीच अब यह फिल्म और अन्य गैर-अमेरिकी फिल्में नए तरह की व्यापारिक बाधाओं के साए में आ गई हैं।

 

अब सवाल ये उठता है कि क्या यह अमेरिकी नीति अपने घरेलू फिल्म उद्योग की रक्षा के लिए है या फिर यह वैश्विक सांस्कृतिक आदान-प्रदान में गिरावट का संकेत है? दशकों से हॉलीवुड का वैश्विक फिल्म बाजार पर प्रभुत्व रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में चीन की “द वांडरिंग अर्थ”, दक्षिण कोरिया की “पैरासाइट” और भारत की “दंगल” जैसी फिल्मों की सफलता ने यह दिखा दिया है कि बहु-सांस्कृतिक, विविध और गुणवत्ता से भरपूर कहानियों को अब वैश्विक दर्शकों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। “नेचा 2” की सफलता इस बात का प्रमाण है कि सिर्फ हॉलीवुड ही नहीं, दुनिया के दूसरे हिस्सों की सांस्कृतिक खासियतें भी दर्शकों को आकर्षित कर सकती हैं।

 

इस नई टैरिफ नीति के पीछे गहरी राजनीतिक सोच छिपी है। चीन-अमेरिका व्यापार तनाव की पृष्ठभूमि में फिल्में अब सॉफ्ट पावर और व्यापारिक टकराव का नया मैदान बनती जा रही हैं। विदेशी फिल्मों पर टैरिफ बढ़ाकर अमेरिका न केवल हॉलीवुड की पकड़ को मजबूत करना चाहता है, बल्कि विदेशी फिल्मों की बाजार प्रतिस्पर्धा को भी कमजोर करना चाहता है।

 

लेकिन यह नीति कई तरह की समस्याएं पैदा कर सकती है। सबसे पहली बात, इससे अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संवाद में रुकावट आएगी। जब विदेशी फिल्मों पर टैरिफ लगेगा, तो अमेरिकी दर्शकों को दुनिया की विविध संस्कृतियों से परिचित होने के मौके कम मिलेंगे। दूसरी बात, यह एक तरह का व्यापारिक बदला लेने की स्थिति पैदा कर सकता है, जिसमें दूसरे देश भी हॉलीवुड फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने लगें, जिससे सांस्कृतिक सहयोग एक जटिल राजनीतिक दांवपेच बन जाएगा। तीसरी बात, जब प्रतिस्पर्धा घटेगी, तो हॉलीवुड की रचनात्मक ऊर्जा पर भी असर पड़ेगा, जिससे वह लंबे समय में कमजोर हो सकता है।

 

चीनी फिल्मों के लिए यह फैसला वैश्वीकरण के प्रवाह के खिलाफ एक कदम माना जा सकता है। बीते वर्षों में “वुल्फ वॉरियर” और “नेचा” जैसी फिल्मों ने धीरे-धीरे अमेरिका जैसे बड़े बाजारों में अपनी जगह बनानी शुरू की थी। लेकिन अगर 100% टैरिफ जैसी बाधाएं खड़ी कर दी गईं, तो इन फिल्मों की वितरण लागत बहुत बढ़ जाएगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनका पहुंच बनाना और मुश्किल हो जाएगा।

 

फिल्में हमेशा से ही विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद का माध्यम रही हैं। मशहूर फ्रांसीसी फिल्म विचारक आंद्रे बाज़िन ने कहा था, “सिनेमा वास्तविकता को छूने की एक कोशिश है।” लेकिन जब राजनीति इस कोशिश को कृत्रिम रूप से रोकती है, तो इसका असर न केवल उद्योग पर होता है, बल्कि पूरी मानव सभ्यता के आदान-प्रदान और आपसी सीख की प्रक्रिया पर भी पड़ता है। चीनी फिल्मों का उभार यह दिखाता है कि सच्चा सांस्कृतिक आत्मविश्वास खुली प्रतिस्पर्धा और उत्कृष्टता से आता है, न कि व्यापार अवरोधों के सहारे अपनी पीठ थपथपाने से।

 

अगर अमेरिका वाकई 100% टैरिफ लगाता है, तो शुरुआती तौर पर हॉलीवुड फिल्मों को ज्यादा स्क्रीनिंग और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन मिल सकता है। लेकिन दीर्घकाल में इसका उल्टा असर पड़ सकता है। जब विदेशी बाजार हॉलीवुड के लिए बंद होने लगेंगे, तो वहां से होने वाली कमाई में बड़ी गिरावट आएगी। आज हॉलीवुड की 40% से ज्यादा कमाई विदेशी बाजारों से आती है। ऐसे में, टैरिफ के जरिए शुरू हुआ यह व्यापार युद्ध एक लंबी चेन रिएक्शन का कारण बन सकता है।

 

हमें याद रखना चाहिए कि फिल्में सिर्फ मनोरंजन या व्यापार का जरिया नहीं, बल्कि वो पुल हैं जो अलग-अलग सभ्यताओं को जोड़ती हैं। अमेरिका की यह नीति फिल्मों को एक राजनीतिक औजार में बदलने का काम कर रही है। जबकि सच्ची फिल्म महाशक्ति वही होती है, जो रचनात्मकता और गुणवत्ता से बाज़ार में अपनी जगह बनाए, ना कि टैरिफ की दीवारों के पीछे। जैसा कि जापानी निर्देशक अकीरा कुरोसावा ने कहा था, “फिल्मों की कोई सीमा नहीं होती, जो वास्तव में अच्छी फिल्में होती हैं, वे पूरी मानवता की होती हैं।”

 

“नेचा 2” जैसी फिल्मों की सफलता ने साबित कर दिया है कि दर्शक गुणवत्ता की कद्र करते हैं, चाहे फिल्म किसी भी देश की क्यों न हो। यह सफलता किसी सरकारी सहायता या संरक्षण की वजह से नहीं, बल्कि बेहतरीन कहानी और सार्वभौमिक भावनाओं की वजह से संभव हुई है। अगर अमेरिका अपने फिल्म उद्योग को आगे बढ़ाना चाहता है, तो उसे टैरिफ के बजाय हॉलीवुड की नवाचार क्षमता को सुधारने की जरूरत है।

 

आज के वैश्वीकृत युग में फिल्म उद्योग की समृद्धि सहयोग, खुलापन और विविधता पर टिकी है। अगर अमेरिका विदेशी फिल्मों पर टैरिफ लगाएगा, तो इससे न केवल वैश्विक फिल्म उद्योग को नुकसान होगा, बल्कि हॉलीवुड खुद भी अलग-थलग पड़ जाएगा। सच्चा सांस्कृतिक आत्मविश्वास विरोधियों को रोककर नहीं, बल्कि उनसे बेहतर बनकर हासिल किया जाता है। फिल्म एक ऐसी कला होनी चाहिए जो दुनिया को जोड़े, न कि राजनीति की शतरंज में एक प्यादा बन जाए।

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